प्रस्तुत रचना हाल ही में नवलेखन ‘क्षितिज लघुकथा सम्मान’ प्राप्त करने वाले Kapil Shastri की है।
जब रचना चौपाल पर लगी और टिप्पणियाँ नहीं आ रही थीं, तो कपिल जी ने इसे अपनी वॉल पर एक नहीं चार बार साझा किया। क्रमश:10,11 और 14 जून को । 11 जून को पहले सुबह और फिर शाम को। लेकिन अफसोस की बात कि उस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। केवल निशा व्यास जी ही वहाँ पहुँचीं। बहरहाल इस बात का उल्लेख इसलिए कि नोटिस नहीं लिए जाने से रचनाकार स्वयं कितने बैचेन थे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अंतत: मुझे भी चौपाल पर एक अप्रिय और कठोर टिप्पणी लिखनी पड़ी। उसका सकारात्मक असर यह हुआ कि इस रचना पर टिप्पणियाँ आईं। और अब भी आ रही हैं।
कपिल जी ने हमेशा की तरह सभी प्रतिक्रियाओं का संज्ञान लिया। लेकिन उन्होंने प्रस्तुत रचना में फिलहाल किसी तरह के बदलाव की जरूरत महसूस नहीं की। शीर्षक के सुझाव भी प्राप्त हुए। पर उन्होंने पहले सोचा गया शीर्षक ‘न्योछावर’ ही उपयुक्त पाया।
कपिल जी अपनी रचना में चाहें तो परिमार्जन कर ही सकते हैं। वे इसके लिए स्वतंत्र हैं। पर चौपाल पर फिलहाल उनकी ‘न्योछावर’ ज्यों की त्यों प्रस्तुत है।
(इससे इतर बात कि पिछले कुछ दिनों से मेरा अनुभव भी यह रहा है कि साझा की जाने वाली पोस्टें पता नहीं क्यों, बहुत लोगों की नजर में आती नहीं हैं। इसलिए बेहतर यह होता है कि आप उसे कॉपी-पेस्ट करें,स्रोत के उल्लेख के साथ।)
न्योछावर : कपिल शास्त्री
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आशुतोष-विमला जी के विवाह की स्वर्णजयंती सालगिरह का मौका था। इसी शहर में अलग कॉलोनी में रह रहे साधन-संपन्न बेटे-बहू ने सालगिरह मानने का भव्य आयोजन किया था। बिलकुल विवाह की तरह। नई सोच की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को ठेका दे दिया गया था। उसमें सब कुछ नया-नया था। परम्परागत वरमाला, बन्ना-बन्नी गाना और मेंहदी भी उसमें शामिल थे।
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आशुतोष-विमला जी के विवाह की स्वर्णजयंती सालगिरह का मौका था। इसी शहर में अलग कॉलोनी में रह रहे साधन-संपन्न बेटे-बहू ने सालगिरह मानने का भव्य आयोजन किया था। बिलकुल विवाह की तरह। नई सोच की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को ठेका दे दिया गया था। उसमें सब कुछ नया-नया था। परम्परागत वरमाला, बन्ना-बन्नी गाना और मेंहदी भी उसमें शामिल थे।
महिलाओं में खासा उत्साह था। वृद्ध दंपत्ति को सुखद आश्चर्य देने के लिए नाते रिश्तेदार तीन चार दिन पहले ही पधार गए थे।
विवाह 1968 में हुआ था। कोरियोग्राफर उसी दौर के चुनिंदा फिल्मी गानों पर नृत्य तैयार कर रही थी। रिश्तेदार मधुमेह, जोड़ों के दर्द, उच्च रक्तचाप, थाइरोइड जैसी जीवन के साथ चलने वाली बीमारियों को ताक पर रखकर कोरियोग्राफर के इशारे पर नाच रहे थे। कुछ थे जो मुश्किल स्टेप्स पर उसे पानी पी-पी कर कोस भी रहे थे।
महिलाओं और पुरुषों के प्रत्येक दिन के लिए अलग-अलग ड्रेस कोड निर्धारित थे। सबको एक बार सूंघ कर तसल्ली कर लेने वाले,सख्त अनुशासन में पले-बढ़े दो वफादार कुत्ते भी प्रत्येक गतिविधियों के मूक दर्शक थे।
युवाओं के लिए यह अत्यंत आनन्ददायक था। टेंट हाउस के थाली चम्मच गिनवाना और पूरियों के उतरने की महक भी बीते दिनों की बात थी। डिस्पोजेबल प्लेट्स में भोजन आ जा रहा था। एल्युमीनियम फॉयल में लिपटी रोटियाँ थीं। अब्बा का पजामा अपने नए नामकरण प्लाजो के साथ महिलाओं के तन पर सुशोभित था।
सालगिरह के दिन युवा-अधेड़ जोड़ों ने नाचते हुए समाँ बाँध दिया था।
आशुतोष जी से पाँच साल छोटे भाई भी जोश में आ गए। उन्हें नाचता देख, उनकी पत्नी पर्स से 200 रुपये का नया नोट निकालकर उनके सिर पर से वार देने से अपने को रोक नहीं सकीं। उन्होंने प्रश्नवाचक निगाहों से चारों ओर देखा, "किसको दूँ ?"
लेकिन आलीशान होटल के वातानुकूलित हॉल में न्योछावर लेने वाला तो कोई था ही नहीं। झेंपकर उन्होंने नोट चुपचाप पर्स में वापस रख लिया।
17/06/2018
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