Tuesday, June 19, 2018

#लघुकथाचौपाल-22 (भाग-एक)

प्रस्‍तुत रचना का कथ्‍य बहुत चिर-परिचित है। वृद्ध दम्‍पतियों की व्‍यथा। दोनों एक-दूसरे की परवाह करते हैं। लेकिन उनका नजरिया कितना अलग है, लेखक ने इस बात को सामने रखने की कोशिश की है। मेरे ख्‍याल में लेखक इसमें सफल हुआ है।
लेखक ने जो रचना का जो प्रारूप भेजा था, यह उसका सम्‍पादित रूप है। पर सम्‍पादन में केवल उसे कसा गया है। वे शब्‍द या विवरण हटाए गए हैं, जिनकी आवश्‍यकता नहीं थी। लेखक की इस रूप पर सहमति है।
अब आप अपनी सहमति और असहमति जताएँ।
अपनी–अपनी दुआ : लेखक का नाम बाद में
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छह नम्‍बर मरीज के इलाज के लिए निश्चय किया गया कि पहले उसकी कीमोथेरपी की जाए। यदि आराम नहीं होता है तो फिर उसके ब्रेस्ट को निकाल देना ही अन्तिम इलाज होगा। सारी बातें उसके पति को विस्तार से समझा दी गईं।
अगली सुबह जब मैं वार्ड में ड्यूटी पर आया तो मैंने उसके पति को आँखें बन्‍द किए, हाथ जोड़े बरामदे में बैठे देखा। मेरे पैरों की आहट से ध्यान भंग होने पर उसने आँखें खोलकर मेरी ओर देखा। नजरें मिलते ही शिष्टाचार वश मैंने पूछा, “लगता है अपने मरीज के लिए भगवान से दुआ कर रहे थे।”
उसने थकी सी आवाज में उत्तर दिया, “डॉक्टर साहेब, मुझे दो महीने पहले हार्ट अटैक आ चुका है। शुगर भी है। पता नहीं कितने दिन और जिन्‍दा रहूँगा। बस भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि मुझसे पहले इसे अपने पास बुला ले। मेरे बाद पता नहीं कोई इसका ध्यान रखेगा भी या नहीं?”
एक फीकी मुस्कान उसकी ओर फेंककर मैं वार्ड में दाखिल हो गया। मैंने देखा छह नम्‍बर मरीज भी हाथ जोड़े, आँखें बन्‍द किए ध्यान में लीन है। उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मैंने थोड़ी ऊँची आवाज में पूछा, “माता जी..! अब तबीयत कैसी है?”
उसने धीरे से आँखें खोलकर मेरी ओर देखा। मैंने मुस्कराकर कहा, “लगता है भगवान से अपने जल्दी ठीक होने की प्रार्थना कर रही हैं?”
उसने एक नज़र बरामदे में बैठे पति पर डाली। फिर थोड़े उदास स्वर में बोली, “डाक्टर साहब! मेरे बाद इनका क्या होगा? पहले ही कितना दुबला गए हैं। ऊपर से मेरी बीमारी की चिन्‍ता ने और घेर लिया। हर छोटे-बड़े काम के लिए मुझ पर ही निर्भर रहते थे। अब पता नहीं सब कैसे करते होंगे? ऊपर वाले से कह रही थी कि थोड़ी सी जिन्दगी और दे दे ताकि कुछ दिन इनके साथ रहकर इनकी देखभाल और कर लूँ।”

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लघुकथा चौपाल -26 (भाग-एक)

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