Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल - 1 (भाग-दो)

अपनी दीवार पर इस नए प्रयोग (पोस्‍ट संख्‍या 19) पर उत्‍साहवर्धक टिप्‍पणियॉं मिलीं। इस प्रयोग के लिए Archana Tiwari ने उकसाया था, और प्रयोग के लिए बलि की बकरा बनने का जिम्‍मा भी उन्‍होंने ही उठाया। उसमें प्रस्‍तुत लघुकथा 'तितलियॉं' दरअसल उनकी ही थी। मैंने उसका सम्‍पादन अवश्‍य किया था, फिर भी उसमें कुछ चूक रह गई थीं।
किसी भी कथा में उसका कथ्‍य, उसकी संवेदना और एक हद तक उसमें तार्किकता और फिर उसका निर्वाह कहीं अधिक महत्‍वपूर्ण होता है। भाषा तथा वर्तनी का महत्‍व तो होता ही है, पर वह बाद में आता है। इस मायने में प्रस्‍तुत कथा में मेरे लिए उसका कथ्‍य और उसमें जाहिर संवेदना और अंतत: उसका निर्वाह कसौटी पर थे। वह उस पर खरी उतरी थी। फिर भी मैं कहूँगा कि अर्चना तिवारी को कथा के अन्‍य पक्षों पर भी ध्‍यान देना ही चाहिए।
कथा पर जो टिप्‍पणियॉं आईं, उनका संज्ञान लेकर अर्चना ने उसमें आवश्‍यक संशोधन किए हैं। एक तरह से संज्ञान लेना ही पाठकों का आभार व्‍यक्‍त करना है।
प्रस्‍तुत है लेखिका द्वारा सम्‍पादित उनकी लघुकथा
तितलियॉं : अर्चना तिवारी
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नये साल के स्वागत में मॉल की रौनक चरम पर थी। ठीक उसके सामने रेहड़ी-खोमचे वाले खड़े थे। उनके बीच कुछ खिलौने-गुब्बारे बेचने वाले बच्चे भी थे जो मॉल के अंदर आने-जाने वालों से अपना सामान खरीदने की मिन्नतें करते घूम रहे थे।
निशा मॉल से निकल कर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगी तभी, “ओ दीदी जी! खिलौना ले लो!” एक बच्‍चे ने आग्रह किया।
“पर मेरे यहाँ तो कोई बच्चा ही नहीं है?” कहते हुए निशा ने उसका गाल सहला दिया।
“ले लीजिये, घर में सजा दीजियेगा!”
“लेकिन बच्‍चे...” जब तक निशा कुछ और कहती, वह बच्चा एक दूसरे आदमी की ओर लपका, “ओ अंकल जी, खिलौना ले लीजिए!”
“हमें नहीं लेने तेरे ये खिलौने!”
“ले लीजिये...कम का लग जाएगा!” अब बच्‍चे की नजर आदमी के साथ वाले बच्‍चे पर थी।
“बोला ना, नहीं चाहिए!” आदमी ने झिड़कते हुआ कहा।
“पापा, मुझे वो वाला जोकर चाहिए!” आदमी की उँगली पकड़े हुए बच्चे ने डंडे से लटके मुखौटों की ओर इशारा किया।
”नहीं बेटा...ये खिलौने अच्छे नहीं हैं, चलो अभी अंदर से दिला देंगे!”
“नहीं साब जी जे खिलौने भी अच्‍छे हैं...एकदम नए!”
“छोरे, ये तू जो बेच रहा है ना ये सब कचरा माल है, जो हमारे दुश्मन देश से आया है!”
“जे कचरा नहीं है साब जी...सारा माल दाम देकर उठाया है!” बच्चे की आवाज भर्रा गयी।
“इधर लाओ, देखूँ क्या-क्या है तुम्हारे पास!” निशा के पुकारते ही बच्चा पुलकित हो उठा।
“हाँ दीदी!...जे देखो चिड़िया! जे मुखौटे वाला जोकर और जे दीवार पर चिपकाने वाली तितलियाँ...” कहते हुए बच्चा आशा भरी नजरों से निशा को देखने लगा।
“अरे वाह...चलो ये तितलियाँ दे दो!” निशा ने कहा।
जाते-जाते वह आदमी निशा की प्रतिक्रिया से ठिठक गया था। उसे ति‍तलियॉं खरीदते देखकर वह बड़बड़ाया , “हुँह, इन्‍हीं लोगों ने देश का बेड़ा गर्क कर रखा है!” और अपने बच्चे को खींचता हुआ मॉल के अंदर घुस गया।
उधर निशा उस बच्चे के होठों पर मंडराती असंख्य तितलियों के सौंदर्य में लीन हो गई।

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