Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल-23 (भाग-2)

आपमें से कईयों को याद होगा कि इसके पहले भाग में चित्रा राणा राघव ने एक टिप्‍पणी करते हुए, मोटापे की समस्‍या पर लम्‍बी टीप लिखी थी। जिसे मैंने सम्‍पादित कर दिया था। दरअसल यह लघुकथा उनकी ही है।
लघुकथा के नए लेखकों में उनका नाम नए और अछूते विषय चुनने में पहचाना-जाने लगा है। बल्कि उससे भी आगे वे जो देखती हैं, उसे लिखती हैं। अपने उस लिखे को वे जबरन लघुकथा में ढालने पर उतारू नहीं रहती हैं। यही बात उनके लेखन में ताजगी बनाए रखती है।
चौपाल पर आने का उनका प्रयास जनवरी से ही आरम्‍भ हो गया था। एक के बाद एक उन्‍होंने मुझे अपनी पाँच-छह रचनाएँ भेजीं। उन सब पर अपनी प्रतिक्रिया से मैंने उन्‍हें अवगत कराया। बहुत विनम्रता के साथ उन्‍होंने मेरी बात सुनी। उस पर सहमति भी जताई। अच्‍छा लगा कि उन्‍होंने मेरी कठोर प्रतिक्रियाओं के बावजूद चौपाल से मुँह नहीं मोड़ा। उसी का नतीजा है कि उनकी यह रचना मैं यहाँ प्रस्‍तुत कर पाया। उनमें गजब की रचनात्‍मक ऊर्जा है। उसका स्‍वागत है। उन्‍हें अभी बहुत लम्‍बा रास्‍ता तय करना है। बहुत-सी बातें समझनी हैं,बहुत-सी सीखनी हैं। बहुत-सी बातों के मोह से बचना है और बहुत-सी बातों से मोह करना है।
रचना पर जो भी टिप्‍पणियाँ आईं, उनका संज्ञान लेकर उन्‍होंने कुछ परिवर्तन किए। परिवर्तित रचना को भी मैंने सम्‍पादित किया है। जिससे उनकी सहमति है।
चित्रा कहती हैं, ‘‘पहले मुझे लगा कि मैं हिंदी लेखन और लघुकथा लेखन में दिख रही विषय शिथिलता को लेकर बहुत कुछ कहूँ। पर लेखक होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी नहीं कि पाठक या समीक्षक को विषय/ समस्याओं की जानकारी चर्चा में दूँ। मैं विभिन्न विषयों पर लिखती रहूँगी। और ऐसा मेरा विश्वास है कि लिखती रही तो अलग या नए विषयों पर पढ़ने वाले जरूर मिलेंगें। मुझे लघुकथा लेखकों से अलग, सामान्य पाठकों की समझने की क्षमता पर और विषय चुनाव को स्वीकार करने की व्यापकता पर कहीं अधिक भरोसा है। मुझे लगता है मैं ‘शीनू’ के संघर्ष को गहनता से व्‍यक्‍त करने में न्याय नहीं कर सकी।’’
इलाज : चित्रा राणा राघव
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शीनू अब कुछ ज्यादा ही शांत होता जा रहा था। उसके ही कहने पर डांस क्लास, स्विमिंग क्लास, स्टेडियम आदि जॉइन भी करवाये, जिन्हें उसने खुद ही छोड़ दिया। अजीब मानसिक अस्थिरता और शारीरिक शिथिलता का शिकार हो रहा था। वह पूरे घर में चिंता का विषय बनता जा रहा था। इलाज के परिणाम न आने पर, माता-पिता की रोक-टोक, डॉक्टर के बताए नियम आदि में वह घुटन महसूस करता। अक्सर कमरे में अकेला रहता। जो भी खाने को दो चुपचाप खा लेता। अपने पसन्दीदा कार्टून, मूवी देखने का भी उसका मन नहीं होता। माँ जितने सवाल करती, स्थिति उतनी ही उलझ जाती। पिता का ध्यान भी उसकी इन सभी गतिविधियों पर था।
पत्‍नी के कहने पर वे शीनू के कमरे में गये। पिता को आया देख, शीनू ने पूछा, “क्या हुआ पापा कुछ काम था ?”
“नहीं बेटा।”
“तो ममा ने फिर कोई शिकायत की आपसे ?”
“नहीं, वो तो सोने की तैयारी कर रही हैं। मुझे एक पार्टी में जाना है। वैसे मेरा भी मन नहीं है, इतनी टेंशन में क्या एन्जॉय करूँगा ! ”
“ टेंशन, कैसी टेंशन ?”
“ बस वही ऑफिस की टेंशन है। छोड़ो, तुम अपना ध्यान रखना। ”
“पापा, अब मैं आपकी टेंशन का कुछ कर भले ही न सकूँ, सुन तो सकता हूँ। आप बताइए।” कहकर उसने पापा को खींचकर अपने बिस्‍तर पर बिठा लिया।
“अरे, बेटा वो मिस्टर बॉस हैं न। मेरे काम में हर वक्‍त कमियाँ ही निकालते रहते हैं। अब कल उन्‍हें एक प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट दिखानी है। बस उसकी ही चिंता है। फाइनल रिपोर्ट को उतना समय मैं दे नहीं सका जितना देना था।”
“हाँ पापा कभी-कभी होती है ऐसी चिंता। मुझे भी हो रही है।”
“तुम्‍हें किस बात की चिंता हो रही है ?” पिता ने घबराकर पूछा।
“यही कि आप सबकी मेहनत बेकार न हो जाए। ऊपर से डिस्ट्रेक्टशन!”
“कौन सी मेहनत, कैसा डिस्ट्रेक्टशन ?”
“वही, जिसका इलाज आप करवा रहे हैं, मेरा मोटापा। डॉक्टर अंकल, ममा आप सब इतनी मेहनत कर रहे हैं। और वो सारी मेहनत बर्बाद करना चाहता है ?”
“वो कौन ?”
“जंक फ़ूड। टी.वी. चालू करो तो वही। स्टेडियम, स्कूल, मॉल, हर जगह उसी के ठेले। दुकानों पर सजा खाना और खाने वालों की भीड़। सब आप सबकी मेहनत बरबाद करना चाहते हैं। मैं बहुत कोशिश करता हूँ कि उधर ध्यान ही न जाए, पर यहाँ-वहाँ पोस्टर्स में वह खाना कितना खूबसूरत दिखता है।’’ शीनू बोला।
“ओह यह बात है।” पिता ने राहत की साँस ली। “पर तुम तो उनके बहकावे में नहीं आ रहे हो न?”
“अभी तक तो नहीं।” शीनू ने कहा।
“…और आगे भी नहीं। चलो पार्टी कैंसिल। अब हम दोनों तुम्हारा डाइट खाना खाते हैं।” पिता ने ढाढस बँधाया।
“पापा मैं भी एक बात कहूँ ?” शीनू बोला।
“ हाँ, हाँ कहो।”
“आपने रिपोर्ट बनाने में पूरी मेहनत की है न? ” शीनू ने पूछा।
“ हाँ, बिलकुल की है।”
“ तो फिर आपको भी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं।” शीनू ने मुस्‍कराते हुए कहा।
“ अरे मेरा शीनू तो सचमुच बड़ा हो गया है।” कहते हुए पिता ने उसे गले से लगा लिया।

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