Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल – 25 (भाग-एक)

प्रस्‍तुत रचना का कथ्‍य बहुत सामान्‍य है। लेकिन उस सामान्‍य में एक छोटे-से अवलोकन ने उसे एक रचना का रूप दे दिया है। लेखक की मूल रचना का यह सम्‍पादित रूप है। लेखक ने जो शीर्षक दिया था, उससे वे स्‍वयं संतुष्‍ट नहीं हैं। इसलिए रचना बिना शीर्षक के ही प्रस्‍तुत है। आप अन्‍य बातों के अलावा आप शीर्षक भी सुझाइए।
बिन शीर्षक : लेखक का नाम बाद में
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आशुतोष-विमला जी के विवाह की स्‍वर्णजयंती सालगिरह का मौका था। इसी शहर में अलग कॉलोनी में रह रहे साधन-संपन्न बेटे-बहू ने सालगिरह मानने का भव्‍य आयोजन किया था। बिलकुल विवाह की तरह। नई सोच की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को ठेका दे दिया गया था। उसमें सब कुछ नया-नया था। परम्‍परागत वरमाला, बन्ना-बन्नी गाना और मेंहदी भी उसमें शामिल थे। महिलाओं में खासा उत्साह था। वृद्ध दंपत्ति को सुखद आश्चर्य देने के लिए नाते रिश्तेदार तीन चार दिन पहले ही पधार गए थे।
विवाह 1968 में हुआ था। कोरियोग्राफर उसी दौर के चुनिंदा फिल्‍मी गानों पर नृत्य तैयार कर रही थी। रिश्तेदार मधुमेह, जोड़ों के दर्द, उच्च रक्तचाप, थाइरोइड जैसी जीवन के साथ चलने वाली बीमारियों को ताक पर रखकर कोरियोग्राफर के इशारे पर नाच रहे थे। कुछ थे जो मुश्किल स्टेप्स पर उसे पानी पी पी कर कोस भी रहे थे।
महिलाओं और पुरुषों के प्रत्येक दिन के लिए अलग-अलग ड्रेस कोड निर्धारित थे। सबको एक बार सूंघ कर तसल्ली कर लेने वाले,सख्त अनुशासन में पले-बढ़े दो वफादार कुत्ते भी प्रत्येक गतिविधियों के मूक दर्शक थे।
युवाओं के लिए यह अत्यंत आनंददायक था। टेंट हाउस के थाली चम्मच गिनवाना और पूरियों के उतरने की महक भी बीते दिनों की बात थी। डिस्पोजेबल प्लेट्स में भोजन आ जा रहा था। एल्युमीनियम फॉयल में लिपटी रोटियाँ थीं। अब्बा का पजामा अपने नए नामकरण प्लाजो के साथ महिलाओं के तन पर सुशोभित था।
सालगिरह के दिन युवा-अधेड़ जोड़ों ने नाचते हुए समाँ बाँध दिया था। आशुतोष जी से पाँच साल छोटे भाई भी जोश में आ गए। उन्हें नाचता देख, उनकी पत्‍नी पर्स से 200 रुपये का नया नोट निकालकर उनके सिर पर से वार देने से अपने को रोक नहीं सकीं। उन्होंने प्रश्नवाचक निगाहों से चारों ओर देखा, 'किसको दूँ ?'
लेकिन आलीशान होटल के वातानुकूलित हॉल में न्योछावर लेने वाला तो कोई था ही नहीं। झेंपकर उन्‍होंने नोट चुपचाप पर्स में वापस रख लिया।

09/06/2018

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