Tuesday, June 19, 2018

लघुकथाचौपाल –15 (भाग-एक)

यह रचना हल्‍के से भाषा सम्‍पादन के बाद यहाँ प्रस्‍तुत है। कथ्‍य बहुत जाना-पहचाना है, पर उसका ट्रीटमेंट चौंकाता है। लेकिन उसी में गहरा तंज है सबकी मानसिकता पर। निश्चित ही संवाद और कसे जा सकते हैं, छोटे किए जा सकते हैं। पर उनमें जो है, वह हटाया नहीं जा सकता।
आगे आप सब बताएँ, सुझाएँ।
कैरियर : लेखक का नाम बाद में
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"आह्हा, ये ल्लो मंझली बहू को फिर से लड़की हो गई।"
"हाँ, बड़ी और छोटी के तो भगवान की दया से दोनों लड़के हैं। इसी की तकदीर में ईश्वर ने लड़कियों की बरसात लिख रखी है।"
"आप हमारी प्रिया बिटिया को क्यों चिढ़ाती हैं। यह कौन सी कम है, देखना हम इसे डॉक्टर बनाएँगे।"
"हुँह, बाप बन बड़ा सिर चढ़ाने से क्या होता है। लड़के तो लड़के ही होते हैं। अगर ऐसा न होता तो भगवान ही लड़के और लड़कियों में भेदभाव कर क्यों बनाता।"
सारा परिवार अस्पताल में मंझली बहू के बिस्तर के आसपास जमा था।
"अरे प्रिया क्या कर रही है। बहन को गोद में उठाने के लिए तू अभी बहुत छोटी है।" प्रिया नन्हीं सी बहन के पालने पर झुकी उसे देख रही थी।
"नहीं, मैं तो इससे कुछ पूछ रही थी।"
"क्या भला! क्या पूछा?" दादी ने हँसते हुए कहा।
"मैंने पूछा, अभी तो तू बहुत छोटी है, पर बड़े होकर तुझे क्या बनना है। "
"अभी से ही क्यों?"
"क्योंकि बच्चे छोटे से ही तो बड़े होकर कुछ बनते हैं।"
"अच्छा तो क्या कहा उसने?"
"उसने कहा कि उसे बड़े होकर लड़का बनना है।"

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