Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल -13 (भाग-एक)

यह रचना जिस रचनाकार की है, वह चौपाल आरम्‍भ होने के समय से लगातार इनबॉक्‍स में मेरे सम्‍पर्क में है। उन्‍होंने चौपाल के लिए अपनी रचना भेजी थी, जो मुझे कथ्‍य नया होने के बावजूद उपयुक्‍त नहीं लगी। रचनाकार ने मेरी प्रतिक्रिया को विनम्रता से स्‍वीकार किया। उसके बाद अपनी कुछ पुरानी रचनाएँ मेरी राय जानने के लिए मुझे भेजीं। उन पर भी उनसे बातचीत हुई। अंतत: यह रचना चौपाल के लिए आई।
कहने को इसमें कथ्‍य तो कुछ भी नहीं है। पर रचनाकार ने अपने आसपास के एक आम दृश्‍य में क्षण भर के प्रसंग को खूबसूरती से पकड़ा है। दरअसल ऐसे प्रसंग हम अक्‍सर देखते हैं, पर उन्‍हें कहने या लिखने की हिम्‍मत हममें से बहुत कम लोग ही जुटा पाते हैं। रचनाकार इस हिम्‍मत के लिए बधाई का हकदार है।
बहरहाल यह मूल रचना का संपादित रूप है। लेकिन इसमें मेरा काम इतना भर ही रहा है, जैसे खेत में खड़ी फसल से खर-पतवार को पहचानकर निकालना।
बाकी अब आपकी बारी।
शुकराना : लेखक का नाम अगले हफ्ते
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त्यौहार का मौसम था, शाम को फूल वाले की दुकान पर बहुत भीड़ थी। वह भीड़ से हटकर थोड़े पीछे की तरफ खड़ी थी। चमकती गोल बड़ी बिंदी और काजल से भरी हुई खूबसूरत आँखें, सुर्ख लिपस्टिक उसके साँवले चेहरे को और भी आकर्षक बना रही थी।
"चार बड़े हार, दो छोटे हार और बीस रुपये के फूल पैक कर दो।" उसके पति ने फूल वाले से कहा। फूल वाला बड़ी कुशलता से हर एक का आर्डर पूरा कर रहा था।
तभी बाइक पर एक युवक आया। युवक ने बाइक पर बैठे-बैठे ही फूल वाले को इशारा किया। शायद पहले से आर्डर तैयार था उसका। अपना पैकेट लिया, और जाने को हुआ। तभी युवक की निगाह उस पर पड़ी। वह दुकान पर करीने से सजा कर रखी,मोगरे की खूबसूरत लड़ियों को अपलक निहारे जा रही थी। उसका पति अब भी व्यस्त था।
युवक पलटा और ऊँची आवाज में फूल वाले से बोला, ‘‘अरे, भैय्या वो क्या बोलते हैं उसको..वो मोगरे के फूल, बालों में लगते हैं...।"
" हूँ गजरा..? " अधूरा वाक्य फूल वाले ने पूरा किया, "दूँ क्या सर ? "
" अरे नहीं आज रहने दो...देर हो गई है। कल तैयार रखना ले जाऊँगा।"
उसने चौंककर युवक को देखा। पल भर के लिए दोनों की नजरें मिलीं। युवक मुस्कराकर चला गया। उसका पति भी पैसे देकर मुड़ा। उसकी तरफ देख, जैसे उसे भी कुछ याद आया। उसकी तरफ देखते हुए फूल वाले से बोला, "अरे हाँ भैया दो गजरे भी पैक कर दो। इन्‍हें भी तो बहुत पसंद हैं न मोगरे की लडि़याँ।"
उसके दिल में पति के लिए उमड़ रहे प्‍यार के साथ, उसकी आँखों की भाषा पढ़ने वाले उस अजनबी के लिए अनचाहे ही शुकराना घर कर गया था।

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लघुकथा चौपाल -26 (भाग-एक)

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