यह लघुकथा नए कथ्य के कारण चौपाल पर है। इस बात के लिए रचनाकार की तारीफ की जानी चाहिए कि उसने इस मुद्दे को पहचाना।
आप अन्य बातों के अलावा इस बात पर जरूर विचार करें कि क्या इसका ट्रीटमेंट और बेहतर हो सकता था ?
बोझ : लेखक का नाम बाद में
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लंच ब्रेक में भी वह बच्चा किताब में सिर घुसाए बैठा था। पढ़ने में उसका बिलकुल मन नहीं था, मगर फिर भी जैसे जबरदस्ती किसी ने जकड़ रखा हो।
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लंच ब्रेक में भी वह बच्चा किताब में सिर घुसाए बैठा था। पढ़ने में उसका बिलकुल मन नहीं था, मगर फिर भी जैसे जबरदस्ती किसी ने जकड़ रखा हो।
अर्चना ने गौर किया कि रह-रह कर बच्चे की निगाह ऑफिस के दरवाजे पर बैठे चपरासी तक जाती है। अर्चना दो-तीन पहले ही इस स्कूल में आई थी।
अर्चना ने उसके पास जा कर पूछा, "आपने अपना लंच फ़िनिश किया?’’
बच्चे ने हाँ में सिर हिला दिया।
"तो जाओ थोड़ी देर प्ले ग्राउण्ड में अपने दोस्तों के साथ खेल लो।" उसने बच्चे के हाथ से किताब लेनी चाही।
"नो मैम!" बच्चे ने एक निगाह पानी की ट्रे लेकर ऑफिस में जाते चपरासी पर डाली और वापस किताब पर सिर झुका लिया।
"क्यों बेटा! क्या आपको खेलना अच्छा नहीं लगता या दूसरे बच्चे तंग करते हैं?" एक अच्छी टीचर की तरह उसने बच्चे का मन टटोलना चाहा।
"नो मैम!" उसकी निगाह फिर चपरासी की ओर चली गई।
प्रिंसिपल मैम बाहर आई थीं, चपरासी खड़े होकर हमेशा की तरह सलाम कर रहा था।
चाइल्ड एब्यूजिंग, अर्चना के दिमाग में बिजली-सी कौंधी।
नहीं नहीं। यह चपरासी तो सीधा आदमी लगता है.... मगर कुछ तो बात जरूर है। उसने सोचा।
"क्या उसने कुछ कहा या बदतमीजी की?" अर्चना ने चपरासी की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
"नो मैम।" फिर वही छोटा-सा जवाब मिला।
"फिर क्या बात है बेटा। सब बच्चे खेल रहे हैं। आपका भी मन पढ़ने में नहीं है, फिर भी जबरदस्ती यहाँ बैठे पढ़ रहे हो?" अर्चना अब सोच में पड़ गई थी।
"मैम! पापा कहते हैं कि अगर पढ़ाई कम करूँगा, और मार्क्स कम आए तो बड़े हो कर चपरासी ही बनना पड़ेगा।"
बच्चे की आँखों में पानी तैर गया था और अर्चना की आँखों में भोले मासूम बच्चे पर पढ़ाई व कॅरियर का बोझ लादने वाले बाप के लिए गुस्सा।
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