Tuesday, June 19, 2018

लघुकथाचौपाल-18 (भाग-एक)

Shyam Sunder Aggarwal जी ने लघुकथा साहित्य‘ पर एक नई शृखंला आरम्‍भ की है – ‘जिन्‍हें लघुकथा कहने में संशय है’।
चौपाल के लिए आई इस रचना के इस रूप को लघुकथा कहने में मुझे भी संशय है। आप क्‍या कहेंगे ? लेकिन जवाब केवल हाँ या ना में न दें। कारण भी बताएँ।
लगी, नहीं लगी
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घर से निकलने से पहले निर्विघ्न यात्रा की कामना से तीनों ने मत्था टेककर भगवान को प्रणाम किया। निर्मला और जगदीश बाथरूम व किचन में जाकर कोई नल खुला तो नहीं छूट गया इसकी पुष्टि कर रहे थे। पाँच साल के अतिआत्मविश्वासी गुड्डू ने अपने भार से भी अधिक के सूटकेस को खुद ही उठाकर बाहर ले जाने की ठानी। इसी उपक्रम में देहरी से टकराकर गिर पड़ा और जोर जोर से अलड़ाने लगा। रुदन सुनकर माता पिता बाहर आये।
वह जोर जोर से चिल्‍लाए जा रहा था, ‘‘लग गई, लग गई।’’
निर्मला ने पहले झिड़का, "अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगा है! हम आ तो रहे थे न! ज़रा भी सब्र नहीं है।" फिर उठाकर उसके कपड़े झाड़े।
जगदीश ने ज़मीन पर दिखाते हुए उसका ध्यान भटकाते हुए मनाया, "अरे देखो तुम्‍हारे गिरने से चीटीं मर गई। तुम्‍हें नहीं लगी, नहीं लगी।" गुड्डू ने भी मान लिया कि नहीं लगी। आंसुओं वाले गाल लिए चेहरा बाहर जाने की खुशी में फिर चहक उठा।
जगदीश ने स्‍टेशन की यात्रा के लिए एक रिक्शा कर लिया था। डामर की ऊबड़खाबड़ रोड पर अधेड़ उमर का रिक्शेवाला बामुश्किल ही उन तीनों को खींच पा रहा था। रोड संकरी थी। पीछे से एक खुली जीप साइड देने के लिए लगातार हॉर्न बजा रही थी। इसका भी उस पर कोई असर नहीं था। दरअसल साइड देने के लिए वह कच्चे रास्ते पर उतार लेता तो फिर रास्ते पर लाने के लिए उसे और दम लगाना पड़ता। आखिरकार खुली जीप को ही ओवरटेक करने के लिए कच्चे रास्ते पर उतरना पड़ा।
जीप में छह-सात दबंग किस्म के युवक थे। जीप को रोड पर वापस चढ़ाकर थोड़ा आगे जाने पर उनमें से एक ने खड़े होकर और चिल्लाकर रिक्शेवाले को दो-तीन भद्दी-सी गालियाँ बकीं। अपशब्दों से आहत हुए बिना रिक्शेवाला पैडल मारता रहा। जगदीश सकपकाकर बगलें झाँकने लगा। गुड्डू ने उत्सुकतावश उसकी ठुड्डी वापस अपनी और मोड़कर एक खास गाली का अर्थ जानना चाहा। जगदीश चुप्‍पी मार गया।
पर निर्मला से रहा नहीं गया। रिक्शेवाले से बोली, "वो नासपिटे,बिगड़े रईसजादे घूर-घूरकर मुझे देख रहे थे और तुम्हें गाली बक रहे थे। तुम्‍हें गाली नहीं लगी। तुम्हें गुस्सा नहीं आया? "
रिक्‍शावाला चुपचाप रिक्‍शा खींचता रहा।
निर्मला उस पर भड़क उठी, " कैसे आदमी हो, तुम्‍हें गाली भी नहीं लगती?"
रिक्‍शेवाले ने पैडल रोककर, पीछे मुड़कर कहा, "नहीं लगती, बहन जी नहीं लगती। गरीब को गाली नहीं, भूख लगती है।"

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