Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल – 8 (भाग-दो)

चौपाल पर यह प्रयोग खासा सफल रहा कहा जा सकता है। दोनों लघुकथाएँ उनके लेखकों के नाम के साथ फिर से एक बार आपके सामने हैं।
‘भीड़’ Kanak K. Harlalka की है। उन्‍होंने सभी मित्रों की प्रतिक्रियाएँ ध्‍यान से देखीं हैं। उनकी लघुकथा वही है, जो पहले प्रस्‍तुत हुई थी।
‘पवित्र-पापी’ अर्चना तिवारी की लघुकथा है। उन्‍होंने भी सभी मित्रों की प्रतिक्रियाओं का संज्ञान लिया। उसके आधार पर अपनी लघुकथा को उन्‍होंने थोड़ा और सम्‍पादित किया है। साथ ही उसका शीर्षक बदलकर अब ‘सेल्‍फी’ रखा है।
हो सकता है कुछ मित्र अब भी इन लघुकथाओं से संतुष्‍ट न हों। पर अंतत: यह एक विमर्श ही है। इसे किसी न किसी बिन्‍दु पर रोकना और छोड़ना ही पड़ता है। पर हॉं, एक-दूसरे की रचनाओं पर सवाल करना हमें बिलकुल नहीं छोड़ना चाहिए।
जिन मित्रों लघुकथाचौपाल-8 (भाग-एक) पर इस विमर्श में भाग लिया था, उन सबको मैं इस भाग में टैग कर रहा हूँ। अगर किसी मित्र को आपत्ति हो तो वे बता सकते हैं, मैं उनका नाम हटा दूँगा।

भीड़ : कनक के.हरललका
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दोनों रोज ऑफिस जाते हुए उस चौराहे से गुजरते थे। वहाँ भीड़ भी रोज मिलती थी। पर आज कुछ ज्यादा ही थी। रुक जाने को ललचाने वाली भीड़। लोग घेरा सा बनाए खड़े थे।
"चल देखते हैं क्या हुआ ?" पहला बोला।
"हाँ हाँ, आखिर इतनी भीड़ क्यों जमा है?" दूसरा बोला।
"नंगी है।"
"ओह, बहुत बुरी हालत है।"
"दुर्गति हो गई है।"
"लगता है रात से ऐसे ही पड़ी है।" भीड़ में फुसफुसाहट जारी थी।
"लगता है रेप हुआ है।"
"अबे आ ना, देखते हैं।" एक अजीब सा स्वाद पहले की आँखों में पसर गया।
दोनों भीड़ में घुसकर आगे जाकर देखने की जद्दोजहद में लग गए। पहला किसी तरह घुस गया। और कुछ ही मिनटों में मुँह बनाए वापस लौट भी आया।
दूसरे ने उत्‍सुकता से पूछा "क्या है? "
"कुछ नहीं यार। चल…लेट हो जाएँगे।" पहला दूसरे को खींचते हुए बोला।
"पर वहाँ क्‍या है?"
"कोई भिखारी था। मर गया।"
और दोनों रोज की तरह अपने ऑफिस के रास्‍ते पर बढ़ गए।
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सेल्फी : अर्चना तिवारी
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मोबाइल पर सन्देश चमका। कोई वीडियो था। साथ ही एक नोट था, “इसे अकेले में देखें।“
सन्देश देखते ही मेरी बाँछें खिल गईं। मैंने वीडियो चालू किया।
“पलट इसे, चेहरा देखना है!” एक अकड़दार आवाज कड़की। उसके साथ ही दिखा कि एक औरत औंधे मुँह जमीन पर पड़ी है। उसके शरीर पर कपड़े न के बराबर थे।
“औरत है साहेब, कोई चादर-वादर ऊपर डाल देते तो पलटते!” यह दूसरी आवाज थी।
“अरे पलट ना...वह मर चुकी है!” आवाज दोबारा कड़की।
“फिर भी साहेब...है तो औरत ही न... !”
“अरे बेवकूफ! पलट ना...पता तो चले कि यह है कौन....!”
कुछ हाथ औरत को सीधा करने लगे। मन हुआ कि वीडियो बंद कर दूँ। लेकिन फिर अजीब सी उत्सुकता ने ऐसा करने से रोक दिया। एकाएक वीडियो ब्लर होने लगा। मैं खिसिया गया। कुछ देर बाद वीडियो साफ हुआ तो उत्सुकता फिर बढ़ी। कैमरा औरत के चेहरे को जूम करता हुआ आहिस्ता-आहिस्ता नीचे आने लगा। लेकिन कुछ ही क्षणों बाद वीडियो समाप्त हो गया। मैं झुँझला उठा। झुँझलाहट में अकस्मात मोबाइल का कैमरा ऑन हो गया। उसमें अपना चेहरा देखते हुए मैं चौंक गया। मुझे खुद पर घिन हो आई।

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