Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल-5 (भाग-एक)

प्रस्‍तुत है इस क्रम की पाँचवी लघुकथा।
लेखक ने अपनी मूल रचना पर दिए गए मेरे सुझावों पर विचार किया। लेखक ने उन सुझावों के आधार पर अपनी कथा में संशोधन एवं परिमार्जन किया है।
मेरी नजर में यह एक परिपक्‍व लघुकथा है। हाँ, फिलहाल इसका एक ही ऐब है, इसका कोई बेहतर शीर्षक नहीं सूझ रहा है। ‘आजादी’ शीर्षक से कथा के अंत का भेद आरम्‍भ में खुल जा रहा है। अत: बेहतर शीर्षक रखने में लेखक की मदद करें। लघुकथा के अन्‍य पहलुओं पर भी प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित हैं।
आजादी : लेखक का नाम बाद में उजागर होगा
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आज फिर उसे लेकर दोनों परिवारों की मीटिंग बैठी थी। कुछ ही साल पहले मसला था ‘क्यों नहीं चाहती ?’ आज मसला था ‘क्यों चाहती हो? ’ वह सुन्दर, एम बी ए पास स्पोर्टस में आगे रहने वाली, वैसी ही गुणी थी जैसी बहू उसके कथित धनाढ्य, खानदानी, रईस ससुराल वाले चाहते थे। और दामाद वैसा ही जैसा उसके घर वाले चाहते थे,खानदानी रईस, स्मार्ट लुक। उसका 'न चाहना' क्यों ? और आज उसका 'डायवोर्स' 'चाहना' क्यों ?
"अब क्या तकलीफ हो गई तुम्हें ?" पिता ने पूछा।
"क्या वह तुम्हें शॉपिंग नहीं ले जाता?" अपने गले का हार ठीक करते हुए राहुल की माँ ने पूछा।
"वह तुम पर हाथ उठाता है ?" उसकी माँ ने अपने पति की ओर देखते हुए पूछा।
"राहुल मेरे साथ सुखी नहीं रह सकता। मैं शायद उसके टेस्ट की नहीं हूँ।"
"मैं सुखी हूँ या नहीं यह तुम कैसे कह सकती हो। मैं जानता हूँ मुझे क्या चाहिए। मैं सुखी हूँ। मैं डायवोर्स नहीं चाहता।" राहुल ने जवाब दिया।
"तो ठीक है, मैं तुम्‍हारे साथ सुखी नहीं हूँ। मुझे तुमसे डायवोर्स चाहिए।" उसने तल्‍खी भरे स्‍वर में कहा।
"क्यों सुखी नहीं हो? मैं अपने ढंग से जीता हूँ। मैंने तुम्हें भी मन लगा रखने का मौका दे रखा है। हमारे घर में औरतें नौकरी नहीं करतीं। फिर भी मैंने तुम्हें नौकरी करने की इजाजत दी है।" राहुल लगभग चिल्‍लाते हुए बोला।
"इजाजत...? मेरी नौकरी...? तुम्हारे पैसे...?" उसने दबे लेकिन तीखे स्‍वर में कहा।
"कुछ नहीं, एक बार बच्चा हो जाए तो खुद ही बन्धन में पड़ जाएगी।" राहुल की माँ बोली।
"बस जल्दी से एक बेटा ले आ। देरी किस बात की है। अभी तक हुआ क्यों नहीं?" उसकी माँ भी पीछे नहीं रही।
" बच्चा..! जहाँ मुझे हर साँस के लिए इजाजत लेनी पड़ती है वहाँ मैं अपने बच्चे को आने की इजाजत कैसे दे सकती हूँ?" उसकी आँखें खिड़की से नजर आ रहे आकाश और उंगलियाँ पर्स में रखी पिल्स को सहला रही थीं।
"फिर आखिर तुम्‍हें क्‍या चाहिए ?" राहुल और उसके पिता एक साथ बोले।
"मुझे चाहिए आजादी, इस दम घोटूँ माहौल से आजादी?"

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लघुकथा चौपाल -26 (भाग-एक)

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