Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल – 2 (भाग-एक)

इस प्रयोग की पहली लघुकथा पर स्‍वागत करती हुई टिप्‍पणियाँ मिलीं। जिन्‍होंने न केवल मेरा हौसला बढ़ाया, बल्कि लघुकथा लिख रहे साथियों को भी इस प्रयोग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इस प्रयोग के लिए कोई भी साथी अपनी लघुकथा मुझे इनबॉक्‍स में भेज सकता है। शर्त है कि वह अप्रकाशित होनी चाहिए।
प्रस्‍तुत है एक और लघुकथा। फिलहाल इस कथा के बारे में मैं इतना ही कहूँगा कि मैंने इसमें न के बराबर सम्‍पादन किया है। जो किया है, उससे लेखक की सहमति है। लेकिन अपनी खूबियों के बावजूद इसमें ऐसा कुछ भी है, जिससे मैं फिलवक्‍त तो सहमत नहीं हूँ। अपनी इस प्रतिक्रिया से मैंने लेखक को भी अवगत करा दिया है। अब आपकी बारी है।
तो निसंकोच बिना किसी लिहाज के अपनी बात कहें।

लघुकथा : सजा : रचनाकार के नाम का खुलासा बाद में
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"माँ तुम केस वापस लेने को कह रही हो? उसने मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश की फिर भी?" लतिका गुस्से में माँ से बोली.
"हाँ." अरूणा ने सिर उठाये बिना ही संक्षिप्त सा जवाब दिया.
"मगर क्यों?" लतिका के चेहरे पर क्षोभ के साथ हजारों सवाल तैर गए.
तभी सुधांशु वहाँ आ पहुँचा.
"आंटी मैं बहुत शर्मिंदा हूँ. मैं नशे में बहक गया था. मैंने लतिका के साथ बदतमीजी की. फिर भी आपने मुझे माफ करके केस वापस ले लिया." उसने हाथ जोड़ते हुए कहा.
"शायद कानून की सजा से ये माफी ज्यादा बड़ी सजा होगी." अरूणा ने कहा.
"ये सजा कहाँ हुई माँ! जब कुछ साल जेल में सड़ेगा, कॅरियर खराब हो जाएगा, लोग थू थू करेंगें, तो वह इसकी सजा होगी. और तुम कह रही हो कि..., " लतिका वह पल याद कर उबल पड़ी.
"ऑबेराय साहब की पत्नी गर्भाशय की किसी गम्भीर बीमारी के कारण कभी माँ नहीं बन सकती थी." बेटी की बात को नजरअंदाज सा करते उसने कहा.
संदर्भहीन बात सुनकर दोनों चकित भाव से उसके मुँह की तरफ ताकने लगे.
"ऐसे में ऑबेराय ने सेरोगेसी का सहारा लिया." माँ ने गला साफ करते हुए कहना शुरू किया.
"नौ महीने एक औरत ने ऑबेराय के अंश को पेट में रखा." लतिका और सुधांशु अवाक् से सुन रहे थे.
"जैविक रूप से तो उस औरत का उस बच्चे से कोई रिश्ता नहीं है, मगर कोख के रिश्ते से वह उसकी माँ हुई और लतिका उसकी..."
वाक्य पूरा होने से पहले ही सुधांशु ऑबेराय चीख पड़ा, "नहीं... मुझे माफ मत करो. मुझे सजा दो. मैं माफी के काबिल नहीं, मुझे सजा दो."

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लघुकथा चौपाल -26 (भाग-एक)

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