Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल –15 (भाग-दो)

कैरियर लघुकथा Kanak K. Harlalka की है।
लेखिका ने लघुकथा पर आई टिप्‍पणियों का संज्ञान लिया है।
लेखिका ने टिप्‍पणी की है कि ‘‘यद्यपि लघुकथा पर विशेष विवेचनात्मक प्रतिक्रियाएँ नहीं आईं। तथापि मैंने जिस उद्देश्य से लघुकथा लिखी थी उसे प्रतिस्थापित करती समीक्षा देखने को नहीं मिली। मेरा उद्देश्य समाज के व्यवहार का बचपन से ही बच्चों के विकास में बाधित मनोवैज्ञानिक ग्रन्थि का प्रभाव दिखलाना था। शायद कथा अपने मंतव्‍य के स्पष्टीकरण में सफलता प्राप्ति में समर्थ नहीं रही। ’’
ले‍किन मेरा कहना इससे थोड़ा इतर है। चूँकि विषय लिंगभेद पर केन्द्रित था, इसलिए मूल बात उसमें दब गई है। इसी वजह से प्रतिक्रियाएँ भी उसी के इर्द-गिर्द आई हैं। अममून यह लघुकथाओं के साथ अक्‍सर होता है कि रचनाकार का जो उद्देश्‍य होता है पाठक कई बार उस तक पहुँच ही नहीं पाते। या यूँ कहे कि कई बार रचनाकार पाठक तक अपनी बात पहुँचा ही नहीं पाता। अब अगर कनक जी जो कहना चाहती थीं, वह पाठकों तक नहीं पहुँचा है, तो उन्‍हें भी इस पर विचार करना ही होगा। उस बात को किसी अन्‍य विषय के साथ जोड़कर संप्रेषित करना होगा।
बहरहाल यह लघुकथा अपने-आप में इतनी कसी हुई है कि इसमें कोई भी परिवर्तन न तो लेखिका को आवश्‍यक लगा और न ही सम्‍पादक के नाते मुझे। यह लिंगभेद की समकालीन मानसिकता को बहुत ही तीखे ढंग से हमारे सामने रखती है।
कैरियर : कनक हरलालका
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"आह्हा, ये ल्लो मंझली बहू को फिर से लड़की हो गई।"
"हाँ, बड़ी और छोटी के तो भगवान की दया से दोनों लड़के हैं। इसी की तकदीर में ईश्वर ने लड़कियों की बरसात लिख रखी है।"
"आप हमारी प्रिया बिटिया को क्यों चिढ़ाती हैं। यह कौन सी कम है, देखना हम इसे डॉक्टर बनाएँगे।"
"हुँह, बाप बन बड़ा सिर चढ़ाने से क्या होता है। लड़के तो लड़के ही होते हैं। अगर ऐसा न होता तो भगवान ही लड़के और लड़कियों में भेदभाव कर क्यों बनाता।"
सारा परिवार अस्पताल में मंझली बहू के बिस्तर के आसपास जमा था।
"अरे प्रिया क्या कर रही है। बहन को गोद में उठाने के लिए तू अभी बहुत छोटी है।" प्रिया नन्हीं सी बहन के पालने पर झुकी उसे देख रही थी।
"नहीं, मैं तो इससे कुछ पूछ रही थी।"
"क्या भला! क्या पूछा?" दादी ने हँसते हुए कहा।
"मैंने पूछा, 'अभी तो तू बहुत छोटी है, पर बड़े होकर तुझे क्या बनना है'। "
"अभी से ही क्यों?"
"क्योंकि बच्चे छोटे से ही तो बड़े होकर कुछ बनते हैं।"
"अच्छा तो क्या कहा उसने?"
"उसने कहा कि उसे बड़े होकर लड़का बनना है।"

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