Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल-12 (भाग-एक)

इस लघुकथा का कथ्‍य भी बहुत अजाना नहीं है। पर आकर्षण यह है कि लेखक ने इसे कुछ अलग तरह से कहने की कोशिश की है।
जब इसका पहला प्रारूप मुझे मिला, तो मेरी प्रतिक्रिया थी कि अलग तरह से कहने के बावजूद यह एक फार्मूला कथा ही लग रही है। लेखक ने मेरे मत को स्‍वीकारते हुए रचना पर और काम करने का वादा किया। दूसरा प्रारूप आया तो वह भी फार्मूले की छाया से मुक्‍त नहीं लग रहा था। लेखक ने फिर से एक प्रयास करने की इच्‍छा जाहिर की। तीसरा प्रारूप आया, साथ में यह इच्‍छा भी कि अगर यह भी न जमे तो मैं (लेखक) इसे कुछ दिन के लिए भूल जाना बेहतर समझूँगा। मैंने तीसरा प्रारूप देखने के बाद लेखक की इच्‍छा से सहमति व्‍यक्‍त की।
अब तक इस रचना पर मैंने कोई काम (सम्‍पादन) नहीं किया था। कथ्‍य पर स्‍वतंत्र रूप से सोचते हुए मुझे कुछ सूझा। मैंने उसे सम्‍पादित करके लेखक को भेजा। लेखक ने थोड़ा समय लिया। इस बीच मुझे कुछ और नई बातें सूझीं। मैंने उन्‍हें समाहित करते हुए बदलाव किए। यह प्रारूप भी लेखक को भेजा। लेखक ने मेरे सुझावों,बदलावों पर गौर किया। और अं‍तत: यह प्रारूप भेजा है, यह कहते हुए कि ‘मुझे विश्‍वास है कि ये अंतिम प्रारूप होगा जो आपको उचित लगेगा I यदि ठीक लगे तो आप इसे चौपाल पर लगा सकते हैंI’
अब सच्‍चाई यह है, बावजूद इसके कि लेखक ने लगभग सारे बदलावों को शामिल किया है, फिर भी एक-दो बातें रह गई हैं। मेरी दृष्टि में वे महत्‍वपूर्ण हैं। पर यह कहीं भी आवश्‍यक नहीं है कि लेखक सम्‍पादक की हर बात से सहमत हो। तो इस असहमति का आदर करते हुए यह लघुकथा प्रस्‍तुत है।
हाँ, कोशिश यह अवश्‍य रही है कि इसे फार्मूले की छाया से मुक्‍त किया जाए, पर छाया धुंधली अवश्‍य हुई है, उसने पीछा अब भी नहीं छोड़ा है।
बुद्ध की वापसी : लेखक का नाम बाद में
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सास भरसक घर के कामों में हाथ बटाने का प्रयास करती लेकिन फिर भी बहू सुलक्षणा के तानों से बच नहीं पाती थी। कुछ दिन पहले लकवा मार जाने के कारण सास बिस्तर पर थी। माँ की देखभाल के लिए बेटे ने एक नौकरानी को काम पर रख दिया था। इससे सुलक्षणा पर काम का बोझ तो नहीं पड़ा लेकिन नौकरानी के खर्चे को लेकर सास को उलाहना देने के लिए उसे एक मुद्दा अवश्य मिल गया।
नौकरानी सास की दवा लेने के लिए बाजार गई थी। सुलक्षणा ने सास को सुनाते हुए रसोई से ही ऊँची आवाज में कहा, “एक तो इनकी दवा-दारु के खर्चे से पहले ही कमर टूटी थी, अब नौकरानी का खर्चा और उठाओ।”
तभी उसे अपने बेटे की किसी से मोबाइल पर बातें करने की आवाजें सुनाई पड़ी। उसका गुस्सा सास की तरफ से बेटे की ओर मुड़ गया, “कभी पढ़ भी लिया कर! जब देखो मोबाइल से चिपका रहता है। अगर तुरंत किताब लेकर डाइनिंग टेबल पर आकर नहीं बैठा तो वहीं कमरे में आकर तेरे कान खींचती हूँ।’’
डाँट खाकर बेटा डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गया और जोर-जोर से किताब पढ़ने लगा। सुलक्षणा भी सब्जियाँ काटने के लिए वहीं आकर बैठ गई। बेटे द्वारा पढ़े गए कुछ शब्द उसके कानों में पड़े, “गौतम की दृष्टि सड़क पर जा रहे एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जिसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे और शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ वह बड़े कष्ट के साथ सड़क पर चल रहा था। पूछने पर सारथी ने बताया कि राजकुमार ये वृद्ध है। एक दिन हम सभी को इसी तरह वृद्ध होकर कष्ट भोगना पड़ता है।”
सुलक्षणा ने चौंककर बेटे की ओर देखा लेकिन वह पढ़ने में व्यस्त था। फिर मन ही मन यह सोच कर पता नहीं क्या अनाप-शनाप पढ़ता रहता है वह सब्जी काटने में व्यस्त हो गयी। कुछ देर बाद उसके कानों में बेटे के पढ़े गए शब्द फिर से पड़े, “राजकुमार ने एक व्यक्ति की ओर जिसकी साँस तेज चल रही थी, बाँहें सूख गई थीं; पेट फूला था; चेहरा निस्तेज था और जो दूसरे के सहारे बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था इशारा करते हुए सारथी से पूछा कि यह कौन है?”
सुलझणा ने फिर बेटे की ओर देखा, वह पूरे मनोयोग से पढ़ रहा था। इसी बीच सुलक्षणा का ध्यान आँगन से आने वाली खटर-पटर की ओर गया। उसने गर्दन घुमाई तो देखा कि उसकी सास लाठी के सहारे घिसटती हुई शौचालय की ओर जा रही थी। वह कुछ ताना मारने ही वाली थी तभी उसने देखा कि उसका बेटा दौड़ता हुआ दादी की मदद के लिए आँगन की ओर जा रहा था ।

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