Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल - 16

तीन साल पहले इसे बस एक संस्‍मरण की तरह लिखा था।
सोच रहा हूँ इसे अगर #लघुकथा कहूँ, तो किस-किसको एतराज हो सकता है ? और क्‍यों ? 🤔
मुझे पता है : राजेश उत्‍साही
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मुम्‍बई से उदयपुर की फ्लाइट रनवे पर खड़ी थी। अन्‍दर बहुत गरमी थी। आमतौर पर एसी हवाई जहाज उड़ने के बाद चालू होता है।
वह मेरे आगे की सीट पर बैठा था। उसने अपनी माँ से कहा एयरहोस्‍टेस से पूछो, ‘यह पंखा क्‍यों नहीं चल रहा।’
माँ ने कहा, ‘चल तो रहा है।’
मैं बहुत देर से उसकी बातें सुन रहा था। मैंने साइड से हाथ डालकर उसका ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित किया। वह संद में से झाँका और बोला, ‘क्‍या है? ’
मैंने कहा, ‘जब हवाई जहाज उड़ेगा तो....’
‘मुझे पता है।’ उसने मेरा वाक्‍य पूरा ही नहीं होने दिया।
‘ही वॉज फ्लाई टू टाइम ऑलरेडी।’ यह उसकी माँ थी।
मैंने पूछा, ‘कितने साल के हैं ये ? ’
‘सिक्‍स ईयर ओल्‍ड।’
‘नहीं मैं पाँच साल का हूँ।’
उसके बाद पूरे समय माँ अपनी हिंगलिश में उसे हवाई जहाज के बाहर विंडो से कुछ न कुछ दिखाने की कोशिश करती रही। हर बार बच्‍चे का जवाब होता, ‘मुझे पता है।’ मैं समझ गया कि यह उसका तकिया कलाम है।
हवाई जहाज उतरा। सब उतरने के लिए लाइन में खड़े थे। बच्‍चे ने स्‍ट्राली खुद खींचने की जिद की। माँ ने धीरे से कुछ कहा।
बच्‍चे ने जोर से कहा, ‘स्‍टुपिड।’
मैं समझ गया कि जरूर ही यह माँ का तकिया कलाम रहा होगा।

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