Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल -14 (भाग-एक)

यह लघुकथा बिना किसी भूमिका के प्रस्‍तुत है।
अबोला : लेखक का नाम बाद में
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वे दोनों मुझ से दो टेबिल छोड़कर बैठे थे। टेबिल पर चार लोगों की जगह थी। औरत टेबिल के बाएँ कोने पर बैठी थी। उसकी पीठ मेरी ओर थी। मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था। आदमी टेबिल के दाएँ कोने पर बैठा था। मैं उसे अच्‍छी तरह देख पा रहा था। शक्‍ल से वह लगभग चालीस साल का लग रहा था। उसकी शर्ट की दो बटन खुले हुए थे। उसमें से छाती के बाल झाँक रहे थे।
वे संभवत: खाने का आर्डर कर चुके थे, लेकिन खाना अब तक आया नहीं था। मैंने नोटिस किया आदमी न तो औरत की तरफ देख रहा है और न ही उससे कोई बातचीत कर रहा है। औरत भी कुछ कह नहीं रही है। क्‍योंकि आदमी का ध्‍यान एक बार भी उसकी ओर नहीं जा रहा था। मुझे लगा शायद वे दोनों ही एक-दूसरे को नहीं जानते हैं। इसलिए उनके बीच कोई बातचीत नहीं हो रही है।
थोड़ा समय बीता। मेरी और उनकी टेबिल पर खाना लग चुका था। लेकिन मेरा ध्‍यान वहीं था। मैंने देखा कि उनका खाना साझा ही था। वे अब भी टेबिल टेबिल के कोनाें पर ही बैठे थे। उन्‍होंने खाना शुरू कर दिया था। पर उनके बीच अबोला अब भी पसरा हुआ था।
क्‍या वे दोस्‍त हैं, पति-पत्‍नी या फिर उनके बीच कोई और रिश्‍ता है? रिश्‍ता जो भी हो, उनके बीच की चुप्‍पी मुझे खल रही थी।
मुझे अपना खाना बेस्‍वाद लगने लगा था। मैं सोच रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि दोनों साथ खाना खा रहे हैं, लेकिन आपस में कोई बात नहीं कर रहे हैं। क्‍या उनमें झगड़ा हुआ होगा? झगड़ा कब हुआ होगा? रेस्‍टोरेंट में आने के पहले या उसमें आने के बाद?
अब तक मैंने मान लिया था कि उनमें झगड़ा हुआ है। अब मुझे उनकी समझदारी से जलन होने लगी थी। भला वे एक-दूसरे से लड़कर भी इतनी इत्‍मीनान से खाना कैसे खा सकते हैं ?
अचानक ही मैंने सुना कि औरत आदमी से किसी व्‍यंजन को चखने का आग्रह कर रही है। लेकिन आदमी हाथ हिलाकर उसे मना कर रहा है।
मैंने इत्‍मीनान की सांस ली। जैसे उनके बीच अबोले का कारण मैं ही रहा होऊँ।

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