Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल-10 (भाग-एक)

एक बार फिर से बिलकुल अलग तेवर की रचना। इसका कथ्‍य किशोर-मनोविज्ञान के इर्द-गिर्द बुना गया है। किशोरों की कई बातें ऐसी होती हैं, जिन्‍हें हम उनसे सुनने लायक भी नहीं समझते, उन्‍हें लेखन में जगह देना तो दूर की बात है। मुझे इसमें यही आकर्षण लगा।
अब आप बताएँ कि रचनाकार ने कथ्‍य के साथ न्‍याय किया है या नहीं।
अनकही : लेखक का नाम बाद में
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घर के सारे काम काज निपटा कर तूलिका मेज कुर्सी पर बैठी कि आज जरूर कुछ लिखेगी। उसने जैसे ही कलम उठाई, उसके हर तरफ हलचल मच गई। वह परेशान हो कर चारों ओर नजर घुमाने लगी। पहले तो उसे कुछ दिखाई नहीं दिया। फिर उसने देखा। उसकी मेज पर नन्हीं-नन्हीं आकृतियाँ घूम रही हैं। वे सभी उससे कुछ कहना चाह रही थीं। उसने ध्यान से उनकी बातें सुनने की कोशिश की। वे कहानियों के पात्र थे। वे चिल्ला-चिल्लाकर उसे अपनी कहानी सुनाना चाह रहे थे। कभी हामिद उसे अपनी ओर खींचता, तो कभी नन्‍हीं। कभी काली कहती कि तुमने मेरे और मेरी माँ के बारे में नहीं लिखा। तो कभी फटेहाल चिन्‍नी अपनी सुरीली आवाज में कहती देखो मैं कितना अच्‍छा गाती हूँ। पर तुम्‍हारी नजर मेरी ओर कभी गयी ही नहीं।
तूलिका ने परेशान होकर कहा, ‘‘लिखूँगी बाबा सबके बारे में लिखूँगी। चलो सबसे पहले मैं काली से ही दोस्ती बढ़ाती हूँ।'’ वह काली की कहानी लिखना शुरू करने ही वाली थी, कि एक प्यारा सा बच्चा कूद कर उसकी कॉपी पर आ गया।
उसने कहा, ‘‘नहीं सबसे पहले मेरे बारे में लिखो।’’ तूलिका उसे ध्यान से देखने लगी।
‘‘लेकिन तुम हो कौन। मैं तो तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं जानती।’’
उसने कहा, ‘‘यही तो मुश्किल है कि कोई मुझे समझता ही नहीं। मेरी माँ भी नहीं।’’
‘‘माँ भी नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है?’’
‘‘क्योंकि मैं जो दिखता हूँ, वह मैं हूँ नहीं।’’
‘‘मतलब !’’
‘‘आज मेरी उम्र 14 साल की है। बचपन से ही मेरा मन फ्रॉक पहनने को करता है। पर मेरी माँ मुझे हमेशा पैण्ट-शर्ट ही पहनाती आयी है। आजकल तो मेरे मन में अजीब सी हलचल मची रहती है।’’
‘‘कैसी हलचल ?’’
‘‘मेरा मन करता है कि मैं माँ की तरह लाल रंग की लिपिस्टिक और बिन्दी लगाऊँ। ढेर सारी चूड़ियाँ और घाघरा पहन कर नाचूँ। जब घर में कोई नहीं होता तो दरवाजा बन्द करके खूब सिंगार करके देर तक नाचता रहता हूँ।’’
तूलिका मंत्रमुग्‍ध उसकी बातें सुनती जा रही थी।
‘‘राधा न बोले न बोले न बोले रे...घूँघट के पट न खोले रे... राधा न बोले न बोले न बोले रे..... ‘‘ वह सुरीले सुर में गाने लगा।
सच में उसने आज तक ऐसी कहानी पर ध्यान ही नहीं दिया था। वह अब अपने घुटनों के बल बैठ गया और फफक-फफककर रोने लगा। तूलिका ने उसके कन्धे पर हाथ रखा ‘‘नहीं, रोओ नहीं, मैं जरूर तुम्हारी कहानी लिखूँगी।’’
‘‘क्या तुम मेरी उलझन समझ सकती हो? मेरी क्लास में एक लड़की पढ़ती है। वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है। इतनी अच्छी ...इतनी अच्छी....इतनी अच्छी.... कि मैं उसे प्यार करने लगी हूँ...नहीं-नहीं लगा हूँ...। वह भी मुझे प्यार करती है।’’
‘‘तुम्‍हें कैसे पता! ’’
‘‘ऐसा उसने खुद मुझसे कहा है।’’
तूलिका खुश होकर हँसने लगी, ‘‘पर तुम रो क्यों रहे हो। शायद इसलिए कि तुम्हें प्यार हो गया है....। है ना! ’’
‘‘नहीं, तुम मेरी उलझन, मेरी घुटन समझ ही नहीं रही हो। दरअसल वह तो मुझे एक लड़का समझ कर प्यार करती है......जब कि मेरा मन तो बचपन से ही लड़की.......।’’ कहकर वह जोर-जोर से रोने लगा।
इतनी जोर से कि मेज पर सिर टिकाए सो रही तूलिका की नींद खुल गयी।

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लघुकथा चौपाल -26 (भाग-एक)

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