Tuesday, June 19, 2018

लघुकथा चौपाल-22 (भाग-दो)

प्रस्‍तुत लघुकथा Arun Kumar Gupta की है।
उन्‍होंने अपनी टिप्‍पणी में लिखा है :
‘अपनी–अपनी दुआ’ पर टिप्पणी करने वाले सभी साथियों का धन्यवाद और आभार।
जब लोग किसी की भी रचना की समीक्षा करते हैं तो उसमें फूल भी होते हैं और काँटे भी। मेरी दृष्टि में दोनों का अपना अपना महत्व है। फूल जहाँ लेखक / कलाकार को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है वहीं काँटे इस बात की ओर इंगित करतें है कि अभी भी पैर और संभाल कर रखने की आवश्यकता है। इसीलिए मेरी लघुकथा पर आई सभी टिप्पणियाँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं। मैंने इस बात को उभारने का प्रयास किया है कि पति और पत्नी दोनों एक दूसरे के प्रति चिंतित हैं। लेकिन दोनों के व्यक्त करने के तरीके एकदम अलग हैं।
जानकी वाही जी की इस टिप्पणी से मैं सहमत हूँ कि पति-पत्नी में लाख मतभेद हों पर कोई तो डोर होती है जो एक दूजे को बाँधे रखती है।
नयना आरती कानिटकर जी ने कथा में विसंगति की बात की है। मेरे अनुसार कथा का ताना-बाना विसंगति इर्दगिर्द नहीं बुना गया है। पति और पत्नी दोनों ही एक-दूसरे को लेकर चिंतित हैं लेकिन दोनों के उसे व्यक्त करने के तरीके अलग-अलग हैं। हाँ यह बात काफी हद तक सही है कि एक के कहने के तरीके में निराशा का भाव (नकारात्मक सोच) ज्यादा है जब कि दूसरे के कहने में आशा का भाव (सकारात्मक सोच) है।
मेरा अपना मानना है कि लघुकथा जीवन की वास्तविकता के अधिक करीब होती है और कुछ क्षण विशेष में उभरे मन के भावों पर टिकी होती है। उन कुछ क्षणों /पलों में मन के एक या दो भाव (कविता के अनुसार रस) ही उभर कर आ सकते है।
फिलहाल मैं अपनी इस कथा में कुछ और बदलाव करने की जरूरत महसूस नहीं कर रहा हूँ। अतः जिस रूप में पहली बार लघुकथा की चौपाल में प्रस्तुत की गई उसी रूप में पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ। सभी का पुनः आभार।
अपनी–अपनी दुआ : अरुण कुमार गुप्‍ता
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छह नम्‍बर मरीज के इलाज के लिए निश्चय किया गया कि पहले उसकी कीमोथेरपी की जाए। यदि आराम नहीं होता है तो फिर उसके ब्रेस्ट को निकाल देना ही अन्तिम इलाज होगा। सारी बातें उसके पति को विस्तार से समझा दी गईं।
अगली सुबह जब मैं वार्ड में ड्यूटी पर आया तो मैंने उसके पति को आँखें बन्‍द किए, हाथ जोड़े बरामदे में बैठे देखा। मेरे पैरों की आहट से ध्यान भंग होने पर उसने आँखें खोलकर मेरी ओर देखा। नजरें मिलते ही शिष्टाचार वश मैंने पूछा, “लगता है अपने मरीज के लिए भगवान से दुआ कर रहे थे।”
उसने थकी सी आवाज में उत्तर दिया, “डॉक्टर साहेब, मुझे दो महीने पहले हार्ट अटैक आ चुका है। शुगर भी है। पता नहीं कितने दिन और जिन्‍दा रहूँगा। बस भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि मुझसे पहले इसे अपने पास बुला ले। मेरे बाद पता नहीं कोई इसका ध्यान रखेगा भी या नहीं?”
एक फीकी मुस्कान उसकी ओर फेंककर मैं वार्ड में दाखिल हो गया। मैंने देखा छह नम्‍बर मरीज भी हाथ जोड़े, आँखें बन्‍द किए ध्यान में लीन है। उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मैंने थोड़ी ऊँची आवाज में पूछा, “माता जी..! अब तबीयत कैसी है?”
उसने धीरे से आँखें खोलकर मेरी ओर देखा। मैंने मुस्कराकर कहा, “लगता है भगवान से अपने जल्दी ठीक होने की प्रार्थना कर रही हैं?”
उसने एक नजर बरामदे में बैठे पति पर डाली। फिर थोड़े उदास स्वर में बोली, “डाक्टर साहब! मेरे बाद इनका क्या होगा? पहले ही कितना दुबला गए हैं। ऊपर से मेरी बीमारी की चिन्‍ता ने और घेर लिया। हर छोटे-बड़े काम के लिए मुझ पर ही निर्भर रहते थे। अब पता नहीं सब कैसे करते होंगे? ऊपर वाले से कह रही थी कि थोड़ी-सी जिन्दगी और दे दे ताकि कुछ दिन इनके साथ रहकर इनकी देखभाल और कर लूँ।”

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